माँ भगवती त्रिपुर भैरवी जयंती,,मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन बड़े ही विधि-विधान से मनाई जाती है। इस दिन माँ त्रिपुर भैरवी की उत्पत्ति हुई थी। त्रिपुर भैरवी को भव-बन्ध-मोचन की देवी कही जाती है। उनकी उपासना से सभी बंधन दूर और व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति होती है। कहा जाता है की शक्ति-साधना तथा भक्ति-मार्ग में किसी भी रुप में त्रिपुर भैरवी की उपासना फलदायक होती है। माँ भगवती त्रिपुर भैरवी की साधना-तप से अहंकार का नाश होता है तब साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है और माता, साधक के समक्ष प्रकट होती है भक्ति-भाव से मन्त्र-जप, पूजा, होम करने से भगवती त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती हैं। उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही संपूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति होती है।
माँ भैरवी के अनेकों नामों से पुकारा जाता है जो इस प्रकार हैं
त्रिपुरा भैरवी,
चैतन्य भैरवी,
सिद्ध भैरवी,
भुवनेश्वर भैरवी,
संपदाप्रद भैरवी,
कमलेश्वरी भैरवी,
कौलेश्वर भैरवी,
कामेश्वरी भैरवी,
नित्याभैरवी,
रुद्रभैरवी,
भद्र भैरवी
षटकुटा भैरवी
त्रिपुरा भैरवी
त्रिपुर भैरवी अवतरण:-
‘नारद-पाञ्चरात्र’ के अनुसार एक बार जब देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो यह सोचकर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं। भगवान शिव जब देवी को अपने समक्ष नहीं पाते तो व्याकुल हो जाते हैं और उन्हें ढूंढने का प्रयास करते हैं। शिवजी, महर्षि नारदजी से देवी के विषय में पूछते हैं तब नारद जी उन्हें देवी का बोध कराते हैं वह कहते हैं कि शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर में हो सकते हैं वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी तब भोले शंकर की आज्ञानुसार नारदजी देवी को खोजने के लिए वहाँ जाते हैं। महर्षि नारद जी जब वहां पहुँचते हैं तो देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो जाती हैं। और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट होता है और इस प्रकार उससे छाया-विग्रह “त्रिपुर-भैरवी” का प्राकट्य होता है।
टिप्पणियाँ
susil behera
31/05/2019
great information...
susil behera
31/05/2019
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