यमय धर्मराजाय मृत्वे चान्तकाय च |
वैवस्वताय कालाय सर्वभूत चायाय च ||
दिवाली आ चुकी है और लोगों की तैयारियां भी पूरी हो चुकी है। अगर आप इस दिवाली में कुछ करने वाले हो तो अभी करें क्योंकि अब समय नहीं है। हमारे यहां दो दिवाली मनाई जाती है। एक छोटी और एक बड़ी और आज हम बात करें छोटी दिवाली के विषय में। यह महा पर्व दिवस नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस दिन को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे - यम चतुर्दशी और रूप चतुर्दशी या रूप चौदस आदि। यह पर्व नरक चौदस और नरक पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है। आमतौर पर लोग इस पर्व को छोटी दीवाली भी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग स्नान यानी तिल का तेल लगाकर अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) यानी कि चिचिंटा या लट जीरा की पत्तियां जल में डालकर स्नान करता है, उसे यमराज की विशेष कृपा मिलती है. नरक जाने से मुक्ति मिलती है और सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। स्नान के बाद सुबह-सवेरे राधा-कृष्ण के मंदिर में जाकर दर्शन करने से पापों का नाश होता है और रूप-सौन्दर्य की प्राप्ति होती है माना जाता है कि महाबली हनुमान का जन्म इसी दिन हुआ था इसीलिए बजरंगबली की भी विशेष पूजा की जाती है।
नरक चतुर्दशी के दिन कैसे करें हनुमान जी की पूजा:
मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान हनुमान ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था. इस दिन भक्त दुख और भय से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहिए।
नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं रूप चतुर्दशी:
मान्यता के अनुसार हिरण्यगभ नाम के एक राजा ने राज-पाट छोड़कर तप में विलीन होने का फैसला किया। कई वर्षों तक तपस्या करने की वजह से उनके शरीर में कीड़े पड़ गए. इस बात से दुखी हिरण्यगभ ने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही. नारद मुनि ने राजा से कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करें। ऐसा करने से फिर से सौन्दर्य की प्राप्ति होगी। राजा ने सबकुछ वैसा ही किया जैसा कि नारद मुनि ने बताया था। राजा फिर से रूपवान हो गए तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं।
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