भारतीय
धार्मिक
ग्रंथों
के
अनुसार
दिवाली
हिन्दू
धर्म
का
मुख्य
एक
महापर्वों है। रोशनी
का
पर्व
दिवाली
कार्तिक
अमावस्या
के
दिन
मनाया
जाता
है।
दिवाली
को
दीपावली के नाम
से
भी
जाना
जाता
है।
मान्यता
है
कि
दीपों
से
सजी
इस
रात
में
लक्ष्मीजी
भ्रमण
के
लिए
निकलती
हैं
और
अपने
भक्तों
को
खुशियां
बांटती
हैं।
दिवाली
मनाने
के
पीछे
मुख्य
कथा
विष्णुजी
के
रूप
भगवान
श्री
राम
से
जुड़ी
है।
दीपावली
पर्व
भारतीय
सभ्यता
की
एक
अनोखी
छठा
को
पेश
करता
है।
आज
अवश्य
पटाखों
की
शोर
में
माता
लक्ष्मी
की
आरती
का
शोर
कम
हो
गया
है
लेकिन
इसके
पीछे
की
मूल
भावना
आज
भी
बनी
हुई
है।
दीपावली पर्व का उद्गमन की कथा
पौराणिक
कथाओं
के
अनुसार
यह
माना
जाता
है
कि
जब
भगवान
राम
अयोध्या
पहुंचे
थे
तब
पूरे
शहर
को
हजारों
तेल
के
दीपकों
(दीया) को जला
कर
उनका
स्वागत
किया
गया
था।
पूरी
अयोध्या
को
फूलों
और
सुंदर
रंगोली
से
सजाया
गया
था।
तब
से, दिवाली
को
रोशनी
का
त्योहार
कहा
जाता
है।
भगवान
राम
का
अपने
घरों
में
स्वागत
करने
के
लिए
लोग
तेल
के
लैंप
के
साथ
सजावट
करते
हैं
यही
कारण
है
कि
इस
त्योहार
को
'दीपावली' भी
कहा
जाता
है।
तेल
के
दीयों
की
परंपरा
बुराई
पर
अच्छाई
की
जीत
का
प्रतीक
है।
लोग
अपने
घरों
के
प्रवेश
द्वार
पर
सुंदर
रंगोली
और
पादुका
(पादलेख) चित्रण
करके
देवी
लक्ष्मी
का
स्वागत
करते
हैं।
दिवाली
के
त्योहार
को
मनाने
के
लिए
लोग
दोस्तों, रिश्तेदार
और
पड़ोसियों
को
मिठाई
और
फल
बांटते
है।
दिवाली
का
जश्न
पांच
दिनों
की
अवधि
में
फैला
हुआ
है
जिसमे
प्रत्येक
दिन
का
अपना
महत्व
है
और
जिसमे
परंपरागत
अनुष्ठानों
का
पालन
किया
जाता
है।
जश्न
'धनतेरस' के
साथ
आरम्भ
होता
है, यह
वह
शुभ
दिन
है
जिसमे
पर
लोग
बर्तन, चांदी
के
बर्तन
या
सोना
खरीदते
हैं।
यह
माना
जाता
है
कि
नए
"धन" या
कीमती
वास्तु
की
खरीदार
शुभ
हैं।
इसके
बाद
छोटी
दिवाली
आती
है
जिसमें
बड़ी
दिवाली
की
तैयारी
होती
है।
लोग
अपने
घरों
को
सजाने
की
शुरुआत
करते
हैं, और
एक
दुसरे
से
मिलते-जुलते
है।
अगले
दिन
बड़ी
दीवाली
मनाई
जाती
है।
इस
दिन, लोग
लक्ष्मी
पूजा
करते
हैं, मिठाई
और
उपहार
के
साथ
एक
दूसरे
के
घर
जाते
हैं, पटाखे
जलाते
हैं
और
अपने
परिवार
और
दोस्तों
के
साथ
समय
बिताते
हैं।
दिवाली
के
अगले
दिन
गोवर्धन
पूजा
का
पर्व
मनाया
जाता
है
और
अंततः
पांच
दिवसीय
उत्सव
भाई
दूज
के
साथ
समाप्त
होता
है
जहां
बहने
अपने
भाइयों
के
माथे
पर
तिलक
लगाती
हैं
और
भाई
बहन
एक-दूसरे
की
भलाई
के
लिए
प्रार्थना
करते
हैं।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा
अधिकांश
घरों
में
दीपावली
के
दिन
लक्ष्मी-गणेश
जी
की
पूजा
की
जाती
है।
हिन्दू
मान्यतानुसार
अमावस्या
की
रात्रि
में
लक्ष्मी
जी
धरती
पर
भ्रमण
करती
हैं
और
लोगों
को
वैभव
का
आशीष
देती
है।
दीपावली
के
दिन
गणेश
जी
की
पूजा
का
यूं
तो
कोई
उल्लेख
नहीं
परंतु
उनकी
पूजा
के
बिना
हर
पूजा
अधूरी
मानी
जाती
है।
इसलिए
लक्ष्मी
जी
के
साथ
विघ्नहर्ता
श्री
गणेश
जी
की
भी
पूजा
की
जाती
है।
दीपदान - दीपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। नारदपुराण के अनुसार इस दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता। इस दिन गायों के सींग आदि को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।
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