नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है - नौ अवतार देवी दुर्गा का पहला रूप। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को पड़ता है और शारदीय नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन घटस्थापना और शैलपुत्री पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री को भवानी, पार्वती और हेमावती के नाम से भी जाना जाता है। वह सांसारिक सार के रूप में जानी जाती है।
चैत्र नवरात्रि दिन 1 | |
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2022 तारीख | शनिवार, 2 अप्रैल |
तिथि | चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा |
देवी | माँ शैलपुत्री |
पूजा | घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा |
मंत्र | 'ओम देवी शैलपुत्रायै नमः' |
फूल | गुड़हल का फूल |
रंग | धूसर |
- पहला दिन माघ गुप्त नवरात्रि: बुधवार, 2 फरवरी
- पहला दिन चैत्र नवरात्रि: शनिवार, 2 अप्रैल
- पहला दिन आषाढ़ गुप्त नवरात्रि: गुरुवार, 30 जून
- पहला दिन शारदीय नवरात्रि: सोमवार, 26 सितंबर
अबोध, निष्पाप व निर्मल से सुशोभित नव देवियों में प्रथम पूजनीय माँ शैलपुत्री-
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्.
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्.
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन.
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
नवरात्रों की शुरुआत माँ दुर्गा के प्रथम रूप "माँ शैलपुत्री" की उपासना के साथ होती है। शैलपुत्री जीव की उस नवजात शिशु की अवस्था को संबोधित करतीं हैं जो अबोध, निष्पाप व निर्मल है। देवी शैलपुत्री मूलतः महादेव कि अर्धांगिनी पार्वती ही है। देवी पार्वती पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं तथा उस जन्म में भी वे महादेव की ही पत्नी थीं। सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में, महादेव का अपमान न सह पाने के कारण, स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर दिया था तथा हिमनरेश हिमावन के घर पार्वती बन कर अवतरित हुईं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा।
शैलपुत्री मंत्र: ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
माता शैलपुत्री ने वृषभ को अपना वाहन बनाया है। मां के दाहिने हाथ में सुशोभित त्रिशूल इस बात का प्रतीक है कि मां अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और हाथ पर कमलपुष्प यह प्रतीक करता है कि मां सबकी मनोकामना पूरी करती हैं। जो भी भक्त मां की सच्चे मन से आराधना करते हैं , मां उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि देवी पार्वती पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी। दक्ष के यज्ञ कुंड में जलकर देवी सती ने जब अपने प्राण त्याग दिए तब महादेव से पुनः मिलन के लिए इन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया।
उपनिषद् ग्रंथों के अनुसार शैलपुत्री ने ही हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। कथा है कि देवी पार्वती शिव से विवाह के पश्चात हर साल नौ दिन अपने मायके यानी पृथ्वी पर आती थीं। नवरात्र के पहले दिन पर्वतराज अपनी पुत्री का स्वागत करके उनकी पूजा करते थे इसलिए नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की पूजा की जाती है।
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टिप्पणियाँ
jyotsna dhar zutshi
21/09/2020
This is the must needed information regarding the great navdurga puja.regards.
jyotsna dhar zutshi
21/09/2020
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Beenakumari
18/10/2020
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