यह एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। आपको बता दें कि पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम 'पापांकुशा एकादशी' हुआ है। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण करने और भजन-कीर्तन करने का विधान है। इस तरह, ईश्वर की आराधना से मन शुद्ध और प्रसन्न होता है और मनुष्य में सद्गुणों का खात्मा होता है। धार्मिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी उपवास का पालन करने से मनुष्य को कठिन तपस्या के बराबर पुण्य मिलता है।
पापंकुशा दिवस पर हिंदू भक्त सख्त उपवास या मौन व्रत का पालन करते हैं। पापंकुशा एकादशी आश्विन (सितंबर-अक्टूबर) के महीने में शुक्ल पक्ष (वैक्सिंग चरण) के दौरान आती है। साल 2021 में पापंकुशा एकादशी 16 अक्टूबर, शनिवार को पड़ रही है।
17 अक्टूबर को पारण का समय - 06:23 AM to 08:40 AM
पारण दिवस पर द्वादशी समाप्ति क्षण - 05:39 PM
एकादशी तिथि प्रारंभ - 06:02 PM on Oct 15, 2021
एकादशी तिथि समाप्त - 05:37 PM on Oct 16, 2021
इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
- दशमी के दिन गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और दाल ये सात प्रकार के अनाज नहीं खाने चाहिए, साथ ही इन सातो अनाजों की एकादशी के दिन पूजा की जाती है।
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद उपवास रखें।
- घट स्थापना करनी चाहिए और कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर आराधना करें। इसके बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
- व्रत के अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और दान करने के बाद उपवास खोलें।
प्राचीन काल मे एक विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी ज़िन्दगी में केवल हिंसा, डकैती, शराब और झूठे भाषणों में बिता दी। जब उसके जीवन का अंतिम चारण आया, तो यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने का आदेश दिया। यमदूतों ने उससे कहा कि कल तुम्हारा आखिरी दिन है। मृत्यु के डर से, वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा। महर्षि ने उस पर दया दिखाई और पापाकुंशा एकादशी का उपवास करने की सलाह दी। इस तरह पापाकुंशा एकादशी का व्रत और पूजन करने से क्रूर फोलर को भगवान की कृपा से मोक्ष मिला।
कहते हैं कि महाभारत काल में भगवान कृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को पापाकुंशा एकादशी का महत्व बताया था। श्री कृष्ण का कहना था कि यह एकादशी पाप को रोकती है, साथ ही यह एकादशी पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष को प्राप्त होता है। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा करनी चाहिए तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा भी देना चाहिए। इस दिन केवल फल खाया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है और दिल खुश रहता है। इस व्रत को रखने से सभी के पाप नष्ट हो जाते है।
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