प्रदोष व्रत | |
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प्रदोष व्रत - भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है और दोनों चंद्र नक्षत्रों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल के दौरान मनाया जाता है। | |
अन्य नाम | प्रदोषम |
तिथि | त्रयोदशी |
सही प्रहर | संध्या काल |
आवृत्ति | द्वि-मासिक |
देवता | भगवान शिव |
विधि | पूजा, उपवास, जागरण, दान, और प्रार्थना |
प्रदोष व्रत 2022 तिथियां | |
शनि प्रदोष व्रत | शनिवार, 15 जनवरी |
रवि प्रदोष व्रत | रविवार, 30 जनवरी |
सोम प्रदोष व्रत | सोमवार, 14 फरवरी |
सोम प्रदोष व्रत | सोमवार, 28 फरवरी |
मंगल प्रदोष व्रत | मंगलवार, 15 मार्च |
मंगल प्रदोष व्रत | मंगलवार, 29 मार्च |
गुरु प्रदोष व्रत | गुरुवार, 14 अप्रैल |
गुरु प्रदोष व्रत | गुरुवार, 28 अप्रैल |
शुक्र प्रदोष व्रत | शुक्रवार, 13 मई |
शुक्र प्रदोष व्रत | शुक्रवार, 27 मई |
रवि प्रदोष व्रत | रविवार, 12 जून |
रवि प्रदोष व्रत | रविवार, 26 जून |
सोम प्रदोष व्रत | सोमवार, 11 जुलाई |
सोम प्रदोष व्रत | सोमवार, 25 जुलाई |
मंगल प्रदोष व्रत | मंगलवार, 9 अगस्त |
बुध प्रदोष व्रत | बुधवार, 24 अगस्त |
गुरु प्रदोष व्रत | गुरुवार, 8 सितंबर |
शुक्र प्रदोष व्रत | शुक्रवार, 23 सितंबर |
शुक्र प्रदोष व्रत | शुक्रवार, 7 अक्टूबर |
शनि प्रदोष व्रत | शनिवार, 22 अक्टूबर |
शनि प्रदोष व्रत | शनिवार, 5 नवंबर |
सोम प्रदोष व्रत | सोमवार, 21 नवंबर |
सोम प्रदोष व्रत | सोमवार, 5 दिसंबर |
बुध प्रदोष व्रत | बुधवार, 21 दिसंबर |
धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रयोदशी तिथि को मनाये जाने वाला प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि 'एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है। उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।
प्रदोष व्रत का महत्व-
प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है. यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
प्रदोष व्रत की विधि-
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प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
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नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें।
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इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है।
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पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है।
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पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है।
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अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है।
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प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
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इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
- पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।
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