वामन जयन्ती भगवान विष्णु के वामन रूप में अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में मनायी जाती है। वामन जयन्ती भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनायी जाती है। भागवत पुराण के अनुसार, वामन भगवान विष्णु के दशावतार में से पाँचवे अवतार थे व त्रेता युग में पहले अवतार थे। भगवान विष्णु के पहले चार अवतार पशु रूप में थे जो की क्रमशः मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और नरसिंघ अवतार थे। इसके पश्चात् वामन मनुष्य रूप में पहले अवतार थे। वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में जब श्रवण नक्षत्र प्रचलित था माता अदिति व कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। क्या होता है कहा जाता हैा
वामन जयन्ती शुक्रवार, सितम्बर 17, 2021 को
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 17, 2021 को 08:07 AM
द्वादशी तिथि समाप्त - सितम्बर 18, 2021 को 06:54 AM
श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ - सितम्बर 17, 2021 को 04:09 AM
श्रवण नक्षत्र समाप्त - सितम्बर 18, 2021 को 03:36 AM
भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोक पर इन्द्र देव के अधिकार को पुनःस्थापित करवाने के लिये वामन अवतार लिया था। भगवान विष्णु के परमभक्त व अत्यन्त बलशाली दैत्य राजा बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। भगवान विष्णु के परम भक्त और दानवीर राजा होने के बावजूद, बलि एक क्रूर और अभिमानी राक्षस था। बलि अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर देवताओं और ब्राह्मणों को डराया व धमकाया करता था। अत्यन्त पराक्रमी और अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक तथा पाताल लोक का स्वामी बन बैठा था।
स्वर्ग से अपना अधिकार छिन जाने पर इन्द्र देव अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु के समक्ष पहुँचे और अपनी पीड़ा बताते हुये सहायता की विनती की। भगवान विष्णु ने इन्द्र देव को आश्वासन दिया कि वे तीनों लोकों को बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने हेतु माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार के रूप में जन्म लेंगे।
1. सामान्य पूजा : इस दिन भगवान वामन की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। मूर्ति है तो दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध लेकर अभिषेक करें। चित्र है तो सामान्य पूजा करें। इस दिन भगवान वामन का पूजन करने के बाद कथा सुनें और बाद में आरती करें। अंत में चावल, दही और मिश्री का दान कर किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं।
2. पंडित से कराई गई पूजा : यदि किसी पंडित से पूजा करा रहे हैं तो वह तो विधि विधान से ही पूजा करेगा। ऐसे में इस दिन व्रत रखा जाता है। मूर्ति के समीप 52 पेड़े और 52 दक्षिणा रखकर पूजा करते हैं। भगवान् वामन का भोग लगाकर सकोरों में चीनी, दही, चावल, शर्बत तथा दक्षिणा पंडित को दान करने के बाद वामन द्वादशी का व्रत पूरा करते हैं। व्रत उद्यापन में पंडित को 1 माला, 2 गौ मुखी मंडल, छाता, आसन, गीता, लाठी, फल, खड़ाऊं तथा दक्षिणा देनी चाहिए।
हिन्दू मान्यताओं में एकादशी का बेहद महत्व है, क्योंकि हर एक एकादशी एक खास व्रत से जुड़ी है। इस दिन लोग पूर्ण विधि के अनुसार व्रत रखते हैं और व्रत से जुड़े देवी-देवता की पूजा करते हैं। हर एक एकादशी में विशेष देव की पूजा करने का एक खास फल भी प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि यदि जिस रूप में व्रत रखने एवं पूजा की विधि बताई गई है, ठीक उसी प्रकार से करो तो भगवान जरूर प्रसन्न होते हैं। इसलिए लोग एकादशी का व्रत जरूर रखते हैं, कुछ लोग तो सभी 24 एकादशियों का व्रत रखते हैं। लेकिन कुछ लोग अपनी मनोकामना के अनुसार ही किसी विशेष एकादशी का व्रत रखते हैं।
अपनी टिप्पणी दर्ज करें