समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से
लौटना। आश्रम या गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में
लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है। ब्रह्मचारी व्यक्ति को
मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षों के लिए तैयार किया जाना। समावर्तन संस्कार
में चारों वर्ण के जातक अपने- अपने ज्ञान को प्राप्त कर पुनः भौतिक जीवन
में वापिस लौटता है।
युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति
जायमानः।
तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यों 3 मनसा देवयन्तः।।
अर्थात्- युवा पुरुष उत्तम वस्त्रों को धारण किए हुए, उपवीत (ब्रह्मचारी) सब विद्या से प्रकाशित जब
गृहाश्रम में आता है, तब वह प्रसिद्ध होकर श्रेय मंगलकारी
शोभायुक्त होता है। उसको धीर, बुद्धिमान, विद्धान, अच्छे
ध्यानयुक्त मन से विद्या के प्रकाश की कामना करते हुए, ऊंचे पद पर बैठाते हैं।
गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व शिष्य का समावर्तन
संस्कार होता था। इस संस्कार से पूर्व ब्रह्मचारी का केशान्त संस्कार होता था और
फिर उसे स्नान कराया जाता था। यह स्नान समावर्तन संस्कार के तहत होता था। इसमें
सुगन्धित पदार्थो एवं औषधादि युक्त जल से भरे हुए वेदी के उत्तर भाग में आठ घड़ों
के जल से स्नान करने का विधान है। यह स्नान विशेष मन्त्रोच्चार के साथ होता था।
इसके बाद ब्रह्मचारी उस मेखला व दण्ड को छोड़ देता था जिसे उसे यज्ञोपवीत के समय
धारण कराया जाता था। इस संस्कार के बाद उसे 'विद्या
स्नातक' की उपाधि आचार्य देते थे। इस उपाधि से वह सगर्व
गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का अधिकारी समझा जाता था। सुन्दर वस्त्र व आभूषण धारण
करता था तथा आचार्यो एवं गुरुजनों से आशीर्वाद ग्रहण कर अपने घर के लिये विदा होता
था।
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