16/10/2018
as
हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले अधिकतर लोग हर दिन की विशेष पूजाएं करते हैं. कई लोग रविवार को छुट्टी का दिन मानते हैं लेकिन इस दिन कई लोग पूजा अर्चना और व्रत रख अपना दिन काटते हैं. ऐसे ही लोगों के आज हम विशेष रविवार की कथा दे रहे हैं.
प्राचीन
काल में एक बुढ़िया रहती थी. वह
नियमित रूप से रविवार का व्रत करती. रविवार
के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके
बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती. सूर्य
भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट
नहीं था. धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य
से भर रहा था.
उस
बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी. बुढ़िया
ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी. अतः
वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी. पड़ोसन
ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया. रविवार
को गोबर न मिलने
से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी. आंगन
न लीप
पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया. सूर्यास्त
होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी
सो गई.
रात्रि
में सूर्य भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और व्रत न करने
तथा उन्हें भोग न लगाने
का कारण पूछा. बुढ़िया
ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल
पाने की बात कही. सूर्य
भगवान ने अपनी अनन्य भक्त बुढ़िया की परेशानी का कारण जानकर उसके सब दुःख दूर करते हुए कहा- हे
माता, तुम
प्रत्येक रविवार को मेरी पूजा और व्रत करती हो. मैं
तुमसे अति प्रसन्न हूं और तुम्हें ऐसी गाय प्रदान करता हूं जो तुम्हारे घर-आंगन
को धन-धान्य
से भर देगी. तुम्हारी
सभी मनोकामनाएं पूरी होगी. रविवार
का व्रत करनेवालों की मैं सभी इच्छाएं पूरी करता हूं. मेरा
व्रत करने व कथा
सुनने से बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है. स्वप्न
में उस बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर सूर्य भगवान अन्तर्धान हो गए.
प्रातःकाल
सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई. गाय
को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया. पड़ोसन
ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक जलने लगी. तभी
गाय ने सोने का गोबर किया. गोबर
को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं. पड़ोसन
ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर
तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई. सोने
के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई. गाय
प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी.
बहुत
दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला. बुढ़िया
पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही. लेकिन
सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई. आंधी
का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया. सुबह
उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ. उस
दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी. सोने
के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई. उस
बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर
राख हो गई और उसने अपने पति को समझा-बुझाकर
उस नगर के राजा के पास भेज दिया.
राजा
को जब बुढ़िया के पास सोने के गोबर देने वाली गाय के बारे में पता चला तो उसने अपने सैनिक भेजकर बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दिया. सैनिक
उस बुढ़िया के घर पहुंचे. उस
समय बुढ़िया सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी. राजा
के सैनिकों ने गाय और बछड़े को खोला और अपने साथ महल की ओर ले चले. बुढ़िया
ने सैनिकों से गाय और उसके बछड़े को न ले
जाने की प्रार्थना की, बहुत
रोई-चिल्लाई, लेकिन राजा के सैनिक नहीं माने. गाय
व बछड़े
के चले जाने से बुढ़िया को बहुत दुःख हुआ. उस
दिन उसने कुछ नहीं खाया और सारी रात सूर्य भगवान से गाय व बछड़े
को लौटाने के लिए प्रार्थना करती रही.
सुन्दर
गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ. सुबह
जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी
बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत करुणा आई. उसी
रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा
तुरन्त लौटा दो, नहीं
तो तुम पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा. तुम्हारा
महल नष्ट हो जाएगा. सूर्य
भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रातः उठते ही गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया. राजा
ने बहुत-सा
धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी. राजा
ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दण्ड दिया.
फिर
राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष
रविवार का व्रत किया करें. रविवार
का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य
से भर गए. चारों
ओर खुशहाली छा गई. सभी
लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए. राज्य
में सभी स्त्री-पुरुष
सुखी जीवन-यापन
करने लगे.
वसंत पंचमी देवी सरस्वती के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मनाई जाती है। इसमें उत्सव से संबंधित कई पौराणि...