दिवाली का दूसरा दिन; नरक चतुर्दशी या काली चौदस कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है; जैसा कि यह त्योहार दिवाली से ठीक एक दिन पहले पड़ता है। इसे वह दिन कहा जाता है जो अंदर की बुराई को दूर करता है। नरक चतुर्दशी को रूप चौदस या रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। 2019 में, नरक चतुर्दशी / रूप चौदस / काली चौदस रविवार, 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
क्षेत्र विशेष के अनुसार रिवाजें होती है और लोग जिन पौराणिक घटनाओं पर विश्वास करते है उसी के अनुसार उसे निभाते है. कुछ जगहों पर यह काली चौदस के रूप में मनाया जाता है. काली अर्थात काला; जैसे, अँधेरा और चौदस अर्थात चौदह. यह कार्त्तिक माह के चौदहवें दिन के आधी रात में आता है.
नरक चतुर्दशी के पीछे की दंतकथा
नरकासुर, धरती की देवी भूदेवी और वाराह (विष्णु) का असुर पुत्र था, जिसे अपने पिता विष्णु से लंबी आयु का वरदान प्राप्त था. वह अपनी शक्तियों का गलत प्रयोग करता था और लोगों को सताया करता था , खासकर, औरतों को अपने किले में कैद कर के रखता था. उसके अत्याचारों को सहने में असफल लोग और साथ ही साथ अन्य दिव्य प्राणी भी सत्यभामा के पास सहायता के लिए गये. सत्यभामा को भूदेवी का अवतार माना जाता था जो कृष्ण की पत्नी थी. सत्यभामा और कृष्ण के नरकासुर के साथ युद्ध के बाद नरकासुर का वध हुआ. इस घटना ने इस बात की विवेचना की कि अगर संतान गलत राह पर अपने कदम रखते है तो माता-पिता को उन्हें सजा देने में हिचकिचाना नहीं चाहिए.
नरकासुर ने अपनी माता से कहा की उसकी मृत्यु के दिन उत्सव मनाया जाए. उसके बाद से ही , ऐसी मान्यता है की इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.
ऐसा कहा जाता है की भगवान् कृष्ण ने अपने शरीर पर नरकासुर के वध के दौरान पड़े रक्त के छींटे को साफ़ करने के लिए तेल से स्नान किया. अतः इस दिन को अभ्यंग स्नान के नाम से भी जानते है.
नरक चतुर्दशी पर पालन किये जाने वाली रस्में :
- सूर्य उदय के पहले जाग जाते है.
- अभ्यंग स्नान
- अभ्यंग स्नान में सूर्य उदय के पहले स्नान करते है. अभ्यंग स्नान करने को पवित्र नदी में स्नान करने जैसा मानते है. इसे प्रातःकाल में ही किया जाता है और ऐसा विश्वास है की यह सभी पापों और बुरी ऊर्जा का नाश कर देता है.
- ऐसा विश्वास है की अभ्यंगस्नान हमारे रक्त प्रवाह को बढ़ाने में सहायता करता है और हमारी त्वचा को नर्म और सुन्दर बनाता है.
- अपने शरीर को सुगन्धित तेल से मालिश करें और फिर उबटन ( बेसन, दूध, केसर, तेल, चन्दन और हल्दी का मिश्रण ) लगायें.
- उबटन को अपने शरीर पर पूरी तरह से मलें और फिर पानी से धो लें.
- स्नान के बाद नए कपड़े पहनें.
- श्री कृष्ण की पूजा
इन मंत्रो का जप करते हुए भगवान् कृष्ण को पुष्प अर्पित करते है :
वासुदेव्सुत्देवाम , नरकासुरमर्दंमः |
देवाकिपर्मनंदन कृष्णं वन्देजगात्गुरुम ||
- संध्याकाळ में दीये जलाते है :
शाम के समय, धनतेरस के दिन यम दीप के साथ ही ग्यारह या इक्कीस नए दीये जलाते है. संध्याकाळ में , दीये जलाने से पहले कुमकुम, चावल और गुड़ से दीये की पूजा करते है. पूजा के बाद , दीये को जलाते है और घर के हर कोने में रखते है.
गोवा और भारत के अन्य पूर्वी भाग में, कागज से नरकासुर के पुतले बनाये जाते है या नाव बनाये जाते है, जो बुराई का प्रतीक होता है और जिसे घास और पटाखों से भरते है. इन पुतलों को भोर (सुबह) के चार बजे जलाकर पवित्र नदियों में बहा देते है और फिर बुराई के अंत का उत्सव पटाखें जलाकर मनाते है.
लोग पटाखें जलाते है जिसे नरकासुर के पुतले के रूप में माना जाता है, जिसका इस दिन वध हुआ था.
बंगाल और पूर्वी भारत के रहनेवाले लोग इस दिन को देवी काली की पूजा के लिए अत्यंत शुभ मानते है और इसी कारण इस दिन काली चौदस भी मनाया जाता है.
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