मनोवैज्ञानिक तथ्य है की , “गुस्सा दर्द के विरुद्ध एक प्राकृतिक प्रतिरोधक है. जब आप किसी को कहते है की “मैं आपसे नफरत करता/करती हूँ” तो इसका वास्तविक अर्थ होता है की आप कहना चाह रहे है की “तुमने मुझे तकलीफ दी है”. इसके अतिरिक्त , अच्छी भावना व्यक्ति के क्रोध को कम करती है और यह उसकी महानता है की वो आपके अपराध के लिए आपको क्षमा करता है. एक बौध कथा है जिसमें यह चित्रण किया गया है की कैसे बोधिसत्व एक राजकुमार को राज्य की भलाई के लिए उनकी अप्रसन्नता से बाहर निकालने में सहायता करते है.
कथा
एक बार बोधिसत्व ने एक तपस्वी के रूप में जन्म लिया. वो जगह-जगह घुमा करते थे , तपस्या करते थे, मन की शांति ढूंढा करते थे और भगवान की रचना बन गए. सभी तपस्वी की तरह वह भी सादगी से जीवन जीते थे. अपने भ्रमणकाल में वो बनारस पहुचें. तब, वर्षाकाल था, और बोधिसत्व का राजा के शाही मेहमान के रूप में स्वागत किया गया. बड़े-ही सम्मान के साथ उनसे व्यवहार किया गया और हर प्रकार से उनका ध्यान रखा गया जिससे की वो शांतिपूर्वक अपना समय व्यतीत कर सकें. वो एक शाही बागान में रुके और अपना समय ध्यान में व्यतित करते.
इस समय , राजा को एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन वहां एक बहुत बड़ी समस्या थी. राजकुमार बुरी-भावानाओं वाला बालक था. उसका नाम रखा गया दुत्थाकुमारा. राजा ने अपने पुत्र के स्वाभाव को बदलने की हर संभव प्रयत्न किये. राजा ने अपने पुत्र को हर वह चीज दी जिसकी वो इच्छा करता ; दुनिया के सभी धन उसके लिए थे. परन्तु, आह ! सभी प्रयत्न व्यर्थ गए. राजा निराश हो चुका था. उसके राज-गद्दी का उत्तराधिकारी तो था लेकिन कौन एक बुरे-स्वाभाव वाले राजा को सहेगा? अतः राजा ने बोधिसत्व से सहायता मांगी.
एक दिन, तपस्वी और राजकुमार शाही बागान में घूम रहे थे. तपस्वी ने उससे पास के एक पौधे के पत्ते को चखने के लिए कहा. जैसे ही राजकुमार ने पत्ते को चखा वो मुनि से झगड़ा करने लगा क्योंकी वो काफी कड़वा था. यह देखकर, तपस्वी ने कहा,” यह एक तरुण पौधे का पत्ता है फिर भी इतना कड़वा है. कल्पना करों की जैसे-जैसे यह पेड़ बड़ा होगा इसका स्वाद और कितना कडवा हो जाएगा. उनकी बात सुनकर , नवयुवक राजकुमार को समझ आया की बोधिसत्व के कहने का अर्थ क्या है. वह अभी भी एक बालक था और उसका मिजाज इतना भयावह था. अगर उसके स्वयं के पिता यह सहन नही कर पाते तो दूसरों को यह कितना बुरा लगता होगा ! और तब क्या होगा जब वह पूरी तरह से एक परिपक्व इंसान बन जाएगा. उसकी बुरी आदतें अधिक संख्या में बढ़ेगी ठीक उसी वृक्ष के पत्ते की तरह. राजकुमार को इस सबक से बहुत ही दीनता महसूस हुई की बोधिसत्व ने उसे कितनी नम्रता से सिखाया. उस दिन के बाद से, युवक राजकुमार ने अपने तरीकों में सुधार लाने के प्रयत्न करने शुरू किये और एक अच्छा इंसान बना.
निष्कर्ष
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
कटुता और प्रेम एक साथ एक-ही ह्रदय में नही रह सकते. हर दिन हमें यह निर्णय अवश्य लेना चाहिए की किसे रखना है.