हल्दी समारोह हिन्दू विवाह का एक अभिन्न अंग है जो विवाह के रस्मों के शुरू होने का सूचक है. दूल्हा और दुल्हन विवाह के सूत्र में बंधने से पहले इस प्राकृतिक पीले मिश्रण से लिप्त हो जाते है. अब आप जरुर यह आश्चर्य कर रहे होंगे की हल्दी कैसे लाभदायक होगा ! इस लेख में हम इसके बारें में जानेंगे.
हल्दी की उत्पत्ति
भारत के वैदिक काल के दौरान हल्दी “सुनहरा मसाला” या “जीवन का मसाला” के रूप में जाने जाते थे जैसे की यह सूर्य से जुड़ा हुआ था. इसने यह पहचान अपने चमकदार पीले रंग के कारण पायी जो की सूर्य को दर्शाता है.
हल्दी समारोह की रस्में
हल्दी समारोह या उबटन समारोह दूल्हा और दुल्हन को विवाह के दिन के लिए तैयार करते है. ऐसा कहा जाता है की विवाह के पूर्व यह घर पर ही प्राकृतिक तरीके से सौंदर्यीकरण की प्रक्रिया होती है.
- आमतौर पर, हल्दी की व्यवस्था घर के बाहर किसी लम्बे-चौड़े से स्थान में की जाती है.
- उबटन बनाने के लिए हल्दी का घोल/मिश्रण/पेस्ट , चने का आटा, दही, चन्दन की लकड़ी, गुलाब जल का प्रयोग किया जाता है.
- तेल बान के लिए सभी अवयव जैसे मेहँदी, सरसों का तेल, सिंदूर, दही, हल्दी, नमक और सरसों के बीज को मिट्टी के पात्र में रखकर एक थाली में रखते है. इसके बाद घास के द्वारा इन 5 अवयवों को दूल्हा और दुल्हन पर लगाया जाता है.
- परिवार के सदस्य सभी मिट्टी के पात्रों में घास को डुबाते है और उसी घास से दूल्हा और दुल्हन के पैर, हाथ, घुटने, कंधे और सिर पर नीचे से ऊपर की तरफ 7 बार इसे लगाते है जिसे तेल चढ़ना कहते है.
- इसके बाद घर की अलग-अलग महिला सदस्य इस पेस्ट को दूल्हा और दुल्हन पर मलती है.
- यह रस्म दूल्हा और दुल्हन के अपने-अपने घरों में उनके परिवार के सदस्यों द्वारा निभाई जाती है.
- इसके बाद एक धार्मिक स्नान विधि द्वारा इनके शरीर से इस रंग को धोया जाता है.
हल्दी सामारोह के पीछे के महत्व और वैज्ञानिक कारण
हल्दी का विस्तृत पैमाने पर उपयोग इसके चिकित्सकीय और स्वास्थ्य-सुधार के गुणों के लिए किया जाता है. अध्यात्मिक तौर पर इसका उपयोग शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने के लिए जाता है जबकि औषधीय रूप से यह एक दाहकरोधी , जीवाणुरोधी, रोगानुरोधक, पाचक, आक्सीकरणरोधी (एंटी-ऑक्सीडेंट), और मूत्रवर्धक घटक है. यह सबसे अधिक उत्पादक और उपयोगी प्राकृतिक उत्पाद है. हल्दी सामारोह को अनिवार्य क्यों माना जाता है इसके बहुत सारे कारण है.
हल्दी नकारात्मकता को दूर रखता है :
कहते है की हल्दी का प्रयोग दूल्हा और दुल्हन को उनके सबसे बड़े दिन से पहले किसी भी प्रकार के बुरे दुष्प्रभावों से सुरक्षा करता है. और इसी कारण एक बार हल्दी सामारोह के समाप्त हो जाने के बाद दूल्हा और दुल्हन को घर से बाहर जाने की मनाही होती है. इसके बाद, वे केवल अपने विवाह के दिन ही बाहर निकल पाते है.
उच्च चिकित्सकीय महत्व
इसमें अत्यधिक औषधीय गुण होते है जो दूल्हा और दुल्हन को सभी तरह के रोगों और संक्रमण से दूर रखता है. विवाह का अतिव्यस्त कार्यक्रम दूल्हा और दूल्हा में रोग और स्वास्थ्य सम्बन्धी मसलें प्रवृत कर देता है ; अतः हल्दी का उपयोग एहतियातीक परिमाण के तौर पर किया जा सकता है.
प्राकृतिक सौंदर्यीकरण
हल्दी सामारोह के समय जिस पेस्ट का उपयोग किया जाता है वह शक्तिशाली रोगाणुरोधक और मुंहासों और फुंसियों से बचाने वाला होता है. यह मृत त्वचा को हटा कर नीचे से नयी चमकदार त्वचा को भी उभारता है. साथ ही जो फीके पीले धब्बे रह जाते है वो आपको उत्तम चमक देते है जो की सुन्दर और दिव्य होता है.