काल अर्थात समय और भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है।
काल भैरव कौन है
काले श्वान वाहन पर विराजमान, किसी बच्चे की तरह नग्न, हाथ में ब्रह्म कपाल लिए रहते हैं। भगवान शिव के रूद्र रूप काल भैरव को कालजयी माना जाता है। काल भैरव उत्पत्ति कथा से इतर यदि हम उनके नाम का शाब्दिक अर्थ निकाले तो हमें अपने प्रश्न काल भैरव कौन है? का जवाब मिल सकता है। काल अर्थात समय, भैरव का अर्थ है भय को हरण करने वाला। इसका पूर्ण अर्थ हुआ भय को हरने वाला या जिससे काल भी भय करें वही काल भैरव है।
काल भैरव की उत्पत्ति
उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। मुख्यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव।
पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।
काल भैरव के प्रसिद्ध मंदिर
काल भैरव के प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है। काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है।
काल भैरव व्रत विधि
कालाष्टमी का जो लोग व्रत रखते है वो लोग सुबह – सुबह उठ कर सबसे पहले स्नान करें और फिर अपने पितरों का ध्यान करें। इसके बाद भगवान काल भैरव की प्रतिमा, चित्र या मन में उनका ध्यान कर व्रत का रब आह्वान करें और पूरे दिन व्रत के नियमों का पालन करें। पूरे दिन उपवास कर रात के समय धूप, दीप, काले तिल, उड़द, सरसो के तेल का दीपक जलाकर ईशान कोण की ओर मुख कर भगवान काल भैरव की पूजा करें।
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काल भैरव की पूजा से होने वाले लाभ
- यदि आपके साथ बार-बार वाहन दुर्घटनाएं हो रही हैं, तो भगवान भोलेनाथ का पंचामृत से अभिषेक करें। इससे दुर्घटनाओं का खतरा टलता है और कठिन से कठिन रोग भी दूर हो जाते हैं।
- अग्नि का भय और चोरी से परेशान हैं तो कालाष्टमी के दिन भगवान भोलेनाथ का पंचामृत से अभिषेक करें।
- धन संपदा की प्राप्ति के लिए कालाष्टमी के दिन भगवान शिव की पूजा करे और सफेद साफा पहनाने, सफेद मिठाई का भोग लगाने से अतुलनीय धन संपदा की प्राप्त होती है।
- कालाष्टमी के दिन भगवान शिव को 108 बिल्व पत्र, 21 धतूरे और भांग अर्पित करने से मुकदमों में जीत मिलेगी और शत्रु शांत होंगे।
- कालाष्टमी के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर महामृत्युंजय मंत्र की 7 माला जाप करने से सर्वत्र रक्षा होती है।
- विशेष कामना की पूर्ति के लिए कालाष्टमी के दिन दृष्टिहीन बच्चों को दूध से बनी मिठाई या खीर खिलाएं। ऐसा करने से 21 दिनों में आपकी इच्छा पूरी हो जाएगी।
- आप पर या आपके परिवार पर भूत-प्रेत या किसी बुरी नजर का साया है तो कालाष्टमी पर रात्रि के समय किसी शिव मंदिर से एक बेल पत्र ले आएं और इसे बारी-बारी से घर के सभी सदस्यों के सिर के ऊपर घड़ी की सुई की दिशा में सात बार घुमाते हुए किसी जल में प्रवाहित कर दें।
- यदि आप अतुलनीय धन संपदा प्राप्त चाहते हैं या आपके स्वयं का भवन नहीं बन पा रहा है तो कालाष्टमी की रात्रि को किसी सुनसान जगह पर बने शिव मंदिर में जाएं और वहां दीपक में रात भर जलने लायक तेल भरकर जलाकर आएं।
- कालाष्टमी के दिन भैरवनाथ को नारियल और जलेबी का भोग लगाकर उसे वहीं भक्तों और गरीबों में बांटने से कार्यों में सफलता मिलती है।
- भैरवनाथ को शराब प्रिय है। उन्हें पीले रंग की शराब चढ़ाने के बाद उसे किसी सफाई कर्मचारी को देने से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान होता है।
- काल भैरव की पूजा से आप पर किसी भी टोटके का असर नहीं होगा। अगर इस तरह की कोई समस्या है तो उससे भी छुटकारा मिल जायेगा।
- जन्मकुंडली में अगर मंगल ग्रह दोष है तो काल भैरव की पूजा कर इस दोष का निवारण कर सकते हैं। राहु-केतु की शांति के लिए भी भैरव पूजन करना लाभदायक होता है। काली उड़द और उड़द से बनी मिठाइयां, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाने से भैरव प्रसन्न होते है।
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काल भैरव की पौराणिक कथा
शिवपुराण के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव का जन्म हुआ था। मान्यता है कि काल भैरव का व्रत रखने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है और साथ ही जादू-टोना और तंत्र-मंत्र का भय भी खत्म हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार, काल भैरव की पूजा करने से सभी नवग्रहों के दोष दूर हो जाते हैं और उनका अशुभ प्रभाव खत्म हो जाता है।
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अपने आप को श्रेष्ठ बताने के लिये अक्सर दूसरे को कमतर आंका जाने लगता है। अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की यह लड़ाई आज से नहीं बल्कि युगों – युगों से चली आ रही है। मनुष्य तो क्या देवता तक इससे न बच सकें। बहुत समय पहले की बात है। भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेवों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया है कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिये समस्त देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। सभा ने काफी मंथन करने के पश्चात जो निष्कर्ष दिया उससे भगवान शिव और विष्णु तो सहमत हो गये लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। यहां तक कि भगवान शिव को अपमानित करने का भी प्रयास किया, जिससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गये। भगवान शंकर के इस भयंकर रूप से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई। सभा में उपस्थित समस्त देवी देवता शिव के इस रूप को देखकर थर्राने लगे। काल भैरव जो कि काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में दंड लिये अवतरित हुए थे, ने ब्रह्मा जी पर प्रहार कर उनके एक सिर को अलग कर दिया। ब्रह्मा जी के पास अब केवल चार शीश ही बचे उन्होंने क्षमा मांगकर काल भैरव के कोप से स्वयं को बचाया। ब्रह्मा जी के माफी मांगने पर भगवान शिव पुन: अपने रूप में आ गये लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष चढ़ चुका था जिससे मुक्ति के लिये वे कई वर्षों तक यत्र तत्र भटकते हुए वाराणसी में पंहुचे जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली।
कुछ कथाओं में श्रेष्ठता की लड़ाई केवल ब्रह्मा जी व भगवान विष्णु के बीच भी बताई जाती है। भगवान काल भैरव को महाकालेश्वर, डंडाधिपति भी कहा जाता है। वाराणसी में दंड से मुक्ति मिलने के कारण इन्हें दंडपानी भी कहा जाता है।