भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार तीज पर्व का विशेष स्थान है हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है। इस बार 06 अगस्त 2020 को कजरी तीज मनाई जाएगी। जो पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक है यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन उपवास रखने से पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए दिन-भर निर्जला उपवास रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार अच्छे पति की कामना के लिए अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को रखती हैं साल भर में कुल चार तीज मनाई जाती हैं, जिनमें कजरी तीज का विशेष महत्व है।
कजरी तीज का शुभ मुहूर्त
तृतीया तिथि आरंभ – 10:49 PM, 05 अगस्त 20202
तृतीया तिथि समाप्त – 12:14 AM, 07 अगस्त 2020
कजरी तीज का महत्व
माना जाता है कि तीज के दिन सभी देवी-देवता भागवान शिव-पार्वती की पूजा करते हैं। हिन्दू धर्म को मानने वाली सुहागिन स्त्रियों के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। यही नहीं जो कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर चाहती हैं वे भी इस व्रत को रखती हैं। मान्यता है कि कजरी तीज का व्रत करने से मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है और पति की उम्र लंबी होती है। कहा जाता है कि कोई कुंवारी कन्या अगर पूरे तन-मन से इस व्रत के रखे तो उसे सुयोग्य वर प्राप्त होता है।
कजरी तीज व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे थे। सतुदी तीज के दिन उसकी बड़ी बहू नीम के पेड़ की पूजा कर रही होती है तभी उसका पति मर जाता है. कुछ समय बाद उसके दूसरे बेटे की शादी होती है। वह भी सतुदी तीज के दिन नीम के पेड़ की पूजा करती है और उसका पति भी मर जाता है. इस तरह साहूकार के छह बेटे मर जाते हैं। फिर सातवें बेटे की शादी होती है.सतुदी तीज के दिन उसकी पत्नी अपनी सास से कहती है कि वह आज नीम के पेड़ की जगह उसकी टहनी तोड़कर पूजा करेगी. जब वह पूजा करती है तब साहूकार के छह बेटे अचानक आ जाते हैं, लेकिन वे किसी को दिखाई नहीं देते. तब वह अपनी जेठानियों से नीम की टहनी की पूजा करने के लिए कहती है. तब वे सब बोलती हैं कि उनके पति जिंदा नहीं हैं इसलिए वे पूजा नहीं कर सकतीं. यह सुनकर छोटी बहू कहती है कि आप सबके पति जिंदा हैं. सभी महिलाएं प्रसन्न होकर अपने पति के साथ पूजा करती हैं। इसके बाद यह बात सब जगह फैल गई कि इस तीज पर नीम के पेड़ की नहीं बल्कि उसकी टहनी की पूजा करनी चाहिए।