परम्परागत, कनक पूजा या कन्या पूजन भी नवरात्र का एक महत्वपूर्ण भाग है। पूजा के समय में, कन्या को धरती पर माँ नवदुर्गा का ‘अवतार’ माना जाता है और पूजा की जाती है। कन्या पूजा या कनक पूजा इस विश्वास के साथ की जाती है की युवा कन्यायें देवी दुर्गा की प्रतिरूप है। भक्त , कन्याओं को अपने घर आमंत्रित करते है और ‘भोग’ अर्पित करते है. ऐसा विश्वास है की ‘कन्या पूजा’ करने से देवी दुर्गा जिनके नौ रूपों की पूजा नवरात्री के दौरान की जाती है , वो प्रसन्न होती है।
कन्या पूजन क्यों किया जाता है?
क्या आप जानते है की कन्या पूजन क्यों की जाती है? हमारे पवित्र ग्रन्थ कहते है की प्रत्येक इंसान में भगवान् का वास होता है लेकिन बशर्ते, इन्सान में अबोधता और शुद्धता होनी चाहिए। बच्चों को मानव-वर्ग में सबसे पवित्र माना जाता है जैसे की उनके अन्दर कोई भी बुरी भावना नही होती. ऐसा माना जाता है की किसी इंसान को पूजने से भगवान् की पूजा करने की अपेक्षा जल्दी फल प्राप्ति होती है।
देवियों के नौ नाम
- कुमारिका
- त्रिमूर्ति
- कल्याणी
- रोहिणी
- काली
- चंडिका
- शांभवी
- दुर्गा
- सुभद्रा
कन्या पूजन के लिए कुछ निश्चित कारकों की जरूरत मानी जाती है.
ऐसा कहा गया है की कुमारी पूजन के लिए जो कन्यायें आती है उन्हें स्वस्थ होना चाहिए और किसी भी प्रकार की बीमारी तथा शारीरिक दोषों से मुक्त होना चाहिए। ये मान्यता है की सभी प्रकार की इच्छा पूर्ति के लिए ब्राहमण कन्याओं को चुनना चाहिए, वैभव और यश के लिए क्षत्रिय कन्याओं का चुनाव करना चाहिए, धन तथा समृद्धि के लिए वैश्य कन्याओं और पुत्र प्राप्ति के लिए शुद्र कन्याओं का चुनाव करना चाहिए।
पूजा विधि और धार्मिक संस्कार
नौ कन्याओं के पैरों को धोते है. फिर उन्हें कपड़े और भेंट देते है. कन्याओं को एक विशेष तरह के आसन पर बैठाया जाता है। उनकी आरती उतारी जाती है और तिलक लगाकर चावल और सिंदूर लगाते है. उसके बाद, उनके लिए भोजन और जल उपस्थित किया जाता है. भोजन में मुख्यतः चना, पूरी, और हलवा शामिल रहते है जिन्हें घी में बनाते है। महिला भक्तजन श्रद्धा के साथ उनके पांव को छूती है और उन्हें भेंट देती है। इसमें एक और भी प्रक्रिया होती है जिसमें कन्याओं को घर भेजने से पहले उन्हें कपड़े या पैसे भी देते है।