जानिए सभी पापों की मुक्ति का मार्ग योगिनी एकादशी व्रत कथा का रहस्य
भारतीय धर्म ग्रन्थों व पुराणों के अनुसार प्रमाणित रूप से मिलता है कि आषाढ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन योगिनी एकादशी व्रत का विशेष विधान है। कृष्ण एकादशी को योगनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु जी की विधि विधान से हर जातक बड़े नम्र भाव से पूजा उपासना करते हैं। योगनी एकादशी के दिन पीपल के पेड की पूजा करने का भी विशेष महत्व होता है। इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह एकादशी मनुष्य को लोक तथा परलोक, दोनों लोक में मुक्ति दिलाता है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध एकादशी व्रत है। इस व्रत के करने से अट्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्राप्त होता है। ‘योगिनी’ महा पापों को शांत करने वाली और महान पुण्य-फल देनेवाली है। योगनी एकादशी की कथा पढ़ने और सुनने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
पूजन विधि :-
इस दिन आस्था रखने वाला व्यक्ति प्रात: काल स्नान आदि कार्यो के बाद, व्रत का संकल्प लेते हैं। योगनी एकादशी व्रत में स्नान का विशेष प्रावधान है। स्नान करने के लिये मिट्टी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है तथा स्नान के लिये तिल के लेप का प्रयोग भी किया जा सकता है। स्नान करने के बाद कलस स्थापना की जाती है और कलस के ऊपर भगवान विष्णु जी कि प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है और पंचोपचार विधि से पूजा कर धूप, दीप नैवेद्य चढ़ाया जाता है। व्रत की रात्रि में जागरण किया जाता है और भगवान विष्णु अनेकों प्रकार का भोग लगा कर उनको प्रसन्न किया जाता है।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
योगिनी एकादशी व्रत के बारे में प्रमाणित अनेकों पौराणिक कथाएं विद्यमान है एक प्रचलित कथा के अनुसार बताते हैं कि एक बार एक अलकापुरी नाम की नगरी में एक कुबेर नाम का राजा था वह राजा भगवान शिव का अनन्य भक्त था और वह राजा नित्य प्रतिदिन भगवान शिव पर ताजे फल-फूल अर्पित करता था. जो माली उसके लिए पुष्प लाया करता था उसका नाम हेम था हेम माली अपनी पत्नि विशालाक्षी के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था. एक दिन हेममाली पूजा कार्य में न लग कर, अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा. जब राजा कुबेर को उसकी राह देखते-देखते दोपहर हो गई तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को हेममाली का पता लगाने की आज्ञा दी। जब सेवकों ने उसका पता लगाया, तो वह कुबेर के पास जाकर कहने लगे, हे राजन, वह माली अभी तक अपनी स्त्री के साथ रत्ती क्रिया में मुग्ध है। इस बात को सुनते ही राजा ने माली को बुलाने आदेश दिया। डर से काँपता हुआ माली राजा के समक्ष उपस्थित हुआ। माली को देखते ही राजा अत्यन्त क्रोधित हुआ और राजा के होंठ फड़फड़ाने लगे।
राजा ने कहा- ‘अरे अधम! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे शाप (श्राप) देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करे।’ कुबेर के शाप (श्राप) से वह तत्क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई। मृत्युलोक में आकर उसने अनेक भयंकर कष्ट भोगे, किन्तु शिव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही। अनेक कष्टों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मो को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा। चलते-चलते मार्ग पर माली को एक ऋषि का आश्रम मिला जो की मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम था वहां पहुँचते है माली उस आश्रम में प्रवेश कर वृद्ध ऋषि से मिलता है और उनको दंडवत प्रणाम करता है। अचानक ऋषि महाराज जी बोलते है हे वत्स ऐसा क्या कार्य किया जो आप भटक रहे हो और तब माली ने अपनी साडी व्यथा सुना कर ऋषि से सदगति का मार्ग पूछने लगा मार्कण्डेय ऋषि द्वारा बताये गए मार्ग पर माली आगे बढ़ा व उसने योगनी एकादशी का व्रत रखना प्रारम्भ किया विधि विधान से किया व्रत माली का सफल हुआ और वह फिर से अपने पुराने रुप में वापस आ गया और अपनी स्त्री के साथ प्रसन्न पूर्वक रहने लगा।
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