श्री रामकृष्ण प्राय इस बात पर जोर देते है की अध्यात्मिक जीवन के विकास में पूर्ण आस्था अत्यंत आवश्यक है. आस्था और विश्वास की शक्ति को उजागर करने के लिए उन्होंने यह कथा सुनाई थी. क्या आप सफलता चाहते है ? जानिए विश्वास क्या है !
एक नौजवान बालक जटिल विद्यालय में पढ्ता था. अपने विद्यालय तक पहुँचने के लिए उसे एक घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता था और प्रायः यह यात्रा उसे भयभीत कर देती थी जिसे वह अपनी माता को बताया करता था. माता ने उसे कहा की इसमें डरने वाली कोई-सी बात नहीं है चूंकि वह हमेशा ही मधुसूदन को बुला सकता है जो उसकी रक्षा के लिए तुरंत ही आ जायेंगे. बालक ने अपनी माता से पूछा की यह मधुसूदन कौन है. माता ने बड़ी सरलता से कहा की मधुसूदन उनके बड़े भाई है.
माता का इससे तात्पर्य भगवान् श्री कृष्ण से था जिन्हें मधुसूदन के नाम से भी बुलाया जाता है. इसके तुरंत ही बाद, एक दिन जब वह उस जंगल से होकर गुजर रहा था जटिल भय से घिर गया और “ओ भाई मधुसूदन !” कहकर चिल्लाने लगा. परन्तु, कोई जवाब ना पाकर जटिला जोर-जोर से रोने लगा और रोते-रोते कहा , “भाई मधुसूदन कहाँ हो तुम? आकर मेरी रक्षा करो. मैं अत्यंत भयभीत हूँ.” उसकी प्रार्थना सीधे ह्रदय से निकली थी और बालक को अपनी माता के शब्दों पर इतना गहरा विश्वास था की उसे या तो मधुसूदन के अस्तित्व पर या उसकी रक्षा के लिए उनके आने पर जरा-भी संदेह नहीं था. तब भगवान् अधिक देर तक उससे दूर नहीं रह सकें. वह बालक के समक्ष प्रस्तुत हुए और कहा, “मैं आ गया हूँ. भयभीत मत हों.” ऐसा कहकर उन्होंने बालक का हाथ पकड़ लिया और उसे जंगल से बाहर निकालकर विद्यालय का रास्ता दिखाया. आगे, उन्होंने बालक को यह निश्चित किया की जब कभी भी जटिला उन्हें बुलाएगा वह उसे जवाब जरुर देंगे.
जब जटिला शाम में घर वापस आया तो बताया की क्या कुछ हुआ, जिसे सुनकर उसकी माता विस्मित थी. हालांकि, वह लम्बे समय से भगवान् कृष्ण की आराधना करती थी लेकिन कभी यह कल्पना नही की कि भगवान् किसी के सामने सदेह उपस्थित होंगे.
यह छोटी-सी कहानी प्रभावशाली ढंग से बताती है की सच्चा विश्वास क्या पा सकता है.