भगवान् शिव की पुत्रियों की अनकही कथा
सभी त्रिमुर्तियों में सबसे श्रेष्ठ, भगवान् शिव की उत्त्पति और उनके जीवन के बारे में भारतीय पुराणों में बहुत सारी कहानियाँ है. इन्हें अतिक्रुद्ध माना जाता है लेकिन इतिहास के सबसे कृपालु भगवान् है. वह एक योगी थे जो कैलाश पर्वत पर सादा और अनुशासित जीवन जीते थे. उन्होंने पारिवारिक जीवन की शुरुआत केवल तब की जब देवी पार्वती का उनके जीवन में आगमन हुआ. बहुतों ने भगवान् शिव के बारें में सभी घटनाओं और कथाओं को सुना होगा लेकिन बहुत कम लोग उनके संतानों के बारे में जानते होंगे. हम सभी जानते है की उनके दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश थे लेकिन, वास्तव में उनके तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ थी. चकित करने वाली ये बात है लेकिन सत्य है ! शिव जी की तीन पुत्रियाँ आज भी देश के विभिन्न भागों में पूजी जाती है.
उनके तीन पुत्र थे :-
- कार्तिकेय
- गणेश
- अय्यप्पा
उनकी तीन पुत्रियाँ थी :-
- अशोकसुंदरी
- मनसा
- ज्योति
आइए, भगवान् शिव की पुत्रियों के अस्तित्व के साक्ष्यों के बारे में चर्चा करते है.
इनका वर्णन शिव पुराण में किया गया है. पाठक रूद्र संहिता: सेक्शन 2 – शिव पुराण का सती खंड पढ़ सकते है.
अशोक सुंदरी
प्रसिद्ध आस्तिक देवदत्त पत्तानैक कहते है की अशोक सुंदरी की कथा गुजरात और उसके पडोसी क्षेत्रों से आते है. इनके जन्म का वर्णन धार्मिक शास्त्र, ‘पद्मा पुराण’ में किया गया है.
चूंकि, पार्वती अकेलापन महसूस कर रही थी तो उन्होंने वृक्ष से अशोक सुंदरी की रचना कर दी. उनका नाम अशोक है क्योंकि उनकी उपस्थिति सभी दुःख का नाश कर देती है और सुंदरी क्योंकि कहा जाता है की वो काफी सुन्दर थी. ऐसा कहा जाता है की उनका संबंध नमक के साथ था क्योंकि जब भगवान् शिव द्वारा गणेशजी का सर धड से अलग किया गया तो वो नमक के थैले के पीछे छिपी हुई थी. इनकी पूजा मुख्यतः गुजरात में होती है.
ज्योति
इनका जन्म भगवान् शिव के प्रभामंडल(ज्योति) की आभा से हुआ था, अतः इनका नाम ज्योति पड़ा. वह भगवान् शिव के तेज को पूर्ण रूप से दर्शाती है. वह लोगों में रोशनी की हिन्दू देवी के रूप में जानी जाती है. वो देवी रायकी के रूप में भी जानी जाती है जिनका संबंध वैदिक रका के साथ है तथा उत्तरी भारत में देवी ज्वालामुखी के नाम से भी जानी जाती है.
इन्हें मुख्य रूप से तमिलनाडु के मंदिरों में काफी अधिक पूजा जाता है.
मनसा
मनसा, लोगों के बीच ऐसी देवी के रूप में जानी जाती है जो सर्प के दंश को ठीक कर देती है. कहा जाता है की उनका जन्म तब हुआ जब भगवान् शिव के वीर्य ने सांपों की माता ‘कादरु’ द्वारा नक्काशी किये गए एक मूर्ति को स्पर्श कर लिया था. इस घटना से इनका जन्म भगवान् शिव की पुत्री के रूप में हुआ परन्तु, पार्वती की पुत्री के रूप में नहीं. मनसा वह थी जिन्होंने “समुन्द्रमंथन्” या “अमृतमंथन” के दौरान भगवान् शिव की रक्षा की थी जब उन्होंने विष पी लिया था.
ऐसा कहा जाता है की माता पार्वती द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया क्योंकि माता ने उन्हें शिव की गुप्त पत्नी समझ लिया था. पुराण कथा यह भी कहते है की उनके बुरे मिजाज का कारण यह था की उन्हें अपने पिता , पति और सौतेली माता द्वारा अस्वीकार किया गया.
इनकी पूजा बंगाल में की जाती है. इनकी कोई विशेष मूर्ति नहीं है जो इनकी प्रतिनिधि करती हो, इसके बदले में इनकी पूजा वृक्ष के शाखाओं, मिट्टी के घड़े या सर्प के रूप में की जाती है. इनकी पूजा मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में की जाती है जब सांप बहुतायात में दिखाई पड़ते है. विश्वास है की ये सर्पदंश के प्रभाव और संक्रामक बीमारी जैसे चेचक को ठीक कर देती है.
पुराण बहुत ही विस्तृत है और इससे जुड़ीं कई कहानियाँ छुपी हुई है. जिस तरह से हम परम ईश्वर की पुत्रियों के अस्तित्व को खोज पाए है, यहाँ बहुत सारी अनेक ऐसी कहानियाँ ब्रहामंड के गर्भ में छुपी हुई है.