भारतीय धर्म ग्रंथों व पौराणिक कथाओं के अनुसार हर वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी को यह “महेश नवमी” का पर्व बड़े ही धूम-धाम से हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस पर्व का उद्गमन (उत्पत्ति) भगवान शिव ने ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन वरदान स्वरूप माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति से की थी। उसी दिन से प्रतिवर्ष की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को “महेश नवमी” के नाम से माहेश्वरी वंशज बहुत ही धूम-धाम से इस पर्व का स्वागत कर उत्सव मनाते है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महादेव शिव और माता पार्वती की आराधना को समर्पित मानी जाती है। भगवान शिव ने इस दिन क्षत्रियों द्वारा ऋषियों के ऊपर मचाये गए आतंक व अपमान से ऋषियों द्वारा मिले श्राप से 72 क्षत्रिय को श्रापमुक्त कर पुनर्जीवन देते हुये कहा कि आज से आपका वंश का नाम माहेश्वरी के नाम से जाना जायेगा। यह पर्व भगवान महेश और पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था प्रगट करता है इसलिए भगवान महेश यानि शिव और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव ‘माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के रुपमें बहुत ही भव्य रूप में मनाया जाता है। हर राज्य के लोग अपने तौर-तरीकों से उत्सव से पूर्व तैयारी करना प्रारम्भ कर लेते हैं और महेश नवमी के दिन गांव-मोहल्ला के लोग एक जगह पर इकट्ठा हो कर धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम कर भगवान शिव की शोभायात्रा निकालते हैं और भगवान शिव-शक्ति की विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर महाआरति कर भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने सफल जीवन की कामना करते हैं।

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