प्रदोष व्रत प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है और सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा सबसे बड़ा पवित्र व्रत माना जाता है। इस पूजा कृष्णपक्ष के 13 वें दिन पर की जाती है जो भगवान् शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। प्रदोष व्रत कथा और विधि जानिए।
प्रदोष व्रत क्यों रखते है ?
ऐसा विश्वास है की इस अवधि के दौरान भगवान् शिव अत्यंत प्रसन्न रहते है और अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद देते है , प्रदोष काल के दौरान या त्रयोदशी के दिन उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करते है। शिव के भक्त मोक्ष प्राप्ति और अपने स्वप्न के पूर्ति के लिए प्रदोष का व्रत करते है।
प्रदोष व्रत कब करते है?
प्रदोष व्रत की पूजा त्रयोदशी तिथि के संध्याकाल में दोनों चंद्र्पक्ष के शुक्ल और कृष्ण पक्ष पर की जाती है। ये नव-चंद्रोदय या पूर्ण चन्द्र; अमावस्या और पूर्णिमा से तेरहवीं तिथि या चन्द्र तिथि होती है।
2019 में तिथियाँ
यहाँ पर प्रदोष व्रत 2019 की सभी तिथियां हैं
- गुरुवार 03 जनवरी 2019
- शनिवार, 19 जनवरी 2019
- शनिवार, 02 फरवरी 2019
- रविवार, 17 फरवरी 2019
- रविवार, 03 मार्च 2019
- सोमवार, 18 मार्च 2019
- मंगलवार, 02 अप्रैल 2019
- बुधवार, 17 अप्रैल 2019
- गुरुवार, 02 मई 2019
- गुरुवार, 16 मई 2019
- शुक्रवार, 31 मई 2019
- शुक्रवार, 14 जून 2019
- रविवार, 30 जून 2019
- रविवार, 14 जुलाई 2019
- सोमवार, 29 जुलाई 2019
- सोमवार, 12 अगस्त 2019
- बुधवार, 28 अगस्त 2019
- बुधवार, 11 सितंबर 2019
- गुरुवार, 26 सितंबर 2019
- शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019
- शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019
- शनिवार, 09 नवंबर 2019
- रविवार, 24 नवंबर 2019
- सोमवार, 09 दिसंबर 2019
- सोमवार, 23 दिसंबर 2019
प्रदोष व्रत मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते है:
- नित्य प्रदोष – यह व्रत हर संध्याकाल में सूर्यास्त के समय के बीच में किया जाता है जब तक की सभी तारें आकाश में नजर आते है।
- पक्ष प्रदोष – यह व्रत अमावस्या के बाद हर चौथे दिन की जाती है।
- मास प्रदोष – यह व्रत हर माह के संध्या कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (पूर्ण चन्द्र के बाद 13 वें चन्द्र दिन) में माह में दो बार किया जाता है।
- महा प्रदोष – यह व्रत कृष्ण पक्ष त्रयोदशी में संध्याकाळ में किया जाता है जो की शनिवार को आता है।
- प्रलय प्रदोष – वह समय जब पूरी सृष्टि भगवान् शिव के साथ विलय होकर नाश होने जा रही थी। प्रदोष व्रत नव-चंद्रोदय के बाद प्रत्येक तेरहवें चन्द्र पक्ष को पति और पत्नी एकसाथ दुखों से मुक्त होने की आशा में और भौतिक सुख-समृद्धि पाने के लिए करते है।
प्रदोष व्रत जो सोमवार को पड़ता है उसे सोम प्रदोष या प्रदोषम कहते है। जो मंगलवार को पड़ता है उसे भौम प्रदोष / प्रदोषम कहते है और जो शनिवार को पड़ता है उसे शनि प्रदोषम कहते है।
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प्रदोष व्रत कथा
पुराणों में प्रदोष व्रत की रोचक कथा का वर्णन है जो की भगवान् विष्णु के परामर्श से हुए समुन्द्रमंथन् से जुड़ा हुआ है। अत्यंत प्रसिद्ध अमृत- जिसमें किसी को भी अमर बना देने की क्षमता थी उसे समुंद्र को मथ कर निकाला गया था। देवताओं और दानवों ने मिलकर इस मंथन को किया जिससे अमृत के साथ-साथ एक अत्यंत शक्तिशाली विष भी निकला जो समस्त सृष्टि का नाश करने की क्षमता रखता था।
इस विष को नष्ट करना था परन्तु किसी के भी पास इसका समाधान नही था। अंत में भगवान् शिव सबका उद्धार करने के लिए आये और इस हलाहल विष को पी लिए। जिससे उनके कंठ में हुई पीड़ा से वो चीख पड़ें। इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए माता पार्वती ने भगवान् शिव के कंठ पर अपने हाथों को रखा और उन्हें इस पीड़ा से मुक्ति दिलाई। देवों और असुरों ने तेरहवें दिन भगवान् शिव को धन्यवाद दिया। विश्वास है की उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने नंदी- बैल के सींगों के बीच नृत्य किया। वह समय जब भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न थे वह प्रदोषम काल या गोधूली समय था।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
स्कन्द पुराण में प्रदोष व्रत करने की सही विधि का वर्णन किया गया है। आप दो प्रकार से इस व्रत कर सकते है।
- 24 घंटे का व्रत रखें जिसमें रात के समय सोना नही शामिल होगा।
- अन्य प्रक्रिया है सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास रखना और संध्या में शिव पूजा के पश्चात् व्रत तोडना।
प्रदोष व्रत का उपवास रखने के लिए इन प्रक्रियाओं का क्रमशः पालन करें:
- संध्या के समय सूर्यास्त से एक घंटा पहले का समय मन्त्रों और प्रार्थनाओं के साथ भगवान् शिव को समर्पित किया जाता है।
- शिवलिंग को जल से स्नान कराया जाता है और बेलपत्र चढ़ाया जाता है।
- देवी पार्वती, गणेश, कार्त्तिक और नंदी की पूजा भी अनिवार्य होती है।
- कलश में जल भरकर उसे नारियल और आम के पत्तों के साथ स्थापित किया जाता है और भगवान् शिव के रूप में इसकी पूजा की जाती है। जिस कलश में जल भरकर रखते है उसे दर्भा घास से ढँक देते है और कलश पर कमल बनाया जाता है।
- इसके पश्चात् पूजा विधि में उपयोग हुए जल को पवित्र राख के साथ ‘प्रसाद’ के रूप में दिया जाता है। इस राख को माथे पर लगाया जाता है।
- पूजा के दौरान दीया जलाना अनिवार्य होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है की इससे चारों तरफ की शुद्धि होती है।
- प्रदोष व्रत के समय ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जप करने से कहते है की बहुत-सा कल्याण और लाभ होते है।
- पूजा का समापन करने के लिए ब्राहमण को एक वस्त्र, भगवान् शिव की प्रतिमा और कुछ अन्य भेंटे दी जाती है।
प्रदोष व्रत अत्यंत शुभ मुहूर्त्त होता है और यह आपके और आपके जीवन के लिए लाभदायक होगा अगर पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ इसका पालन करें।