पुरे साल भर में कुल 12 रोहिणी व्रत आते है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत साल में एक बार नहीं बल्कि हर महीने में आता है। सामान्यतौर पर रोहिणी व्रत को 3, 5 या 7 नियमित सालों के लिए किया जाता है। लेकिन अक्सर लोग सलाह देते है की रोहिणी व्रत केवल 5 साल या 5 महीने ही करना चाहिए। रोहिणी व्रत का जैन धर्माविलंबियों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। 27 नक्षत्रों में से रोहिणी भी एक है। जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है, उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है। यहाँ हम आपको वर्ष 2019 में आने वाले सभी रोहिणी व्रत की सूची देने जा रहे है।
2019 रोहिणी व्रत की तिथियां (तारीख)
- 18 जनवरी, 2019, शुक्रवार
- 14 फरवरी, 2019, गुरुवार
- 13 मार्च 2019, बुधवार
- 10 अप्रैल, 2019, बुधवार
- 7 मई, 2019, मंगलवार
- 3 जून 2019, सोमवार
- 1 जुलाई 2019, सोमवार
- 28 जुलाई, 2019, रविवार
- 24 अगस्त, 2019, शनिवार
- 21 सितंबर, 2019, शनिवार
- 18 अक्टूबर, 2019, शुक्रवार
- 14 नवंबर, 2019, गुरुवार
- 11 दिसंबर 2019, बुधवार
रोहिणी व्रत कथा
चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति, सात पुत्रों एवं एक पुत्री रोहिणी के साथ रहते थे। एक बार राजा ने निमित्तज्ञानी से पूछा कि उनकी पुत्री का वर कौन होगा इस पर उन्होंने कहा कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ रोहिणी का विवाह होगा। यह सुनकर राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें कन्या रोहिणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाली और उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। एक समय हस्तिनापुर नगर के वन में श्री चारण नमक मुनिराज से मिलने अशोक अपने प्रियजनों के साथ गए। अशोक ने मुनिराज से पूछा, कि उनकी रानी इतनी शांतचित्त क्यों है। इस पर मुनिराज ने उन्हें बताया कि इसी नगर में वस्तुपाल नाम का राजा था और उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की दुर्गंधा कन्या उत्पन्न हुई। धनमित्र को हमेशा चिंता रहती थी, कि इस कन्या से कौन विवाह करेगा। धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। लेकिन अत्यंत दुर्गंध से पीडि़त होकर वह एक ही मास में उसे छोड़कर कहीं चला गया। उसी समय अमृतसेन मुनिराज उस नगर में आये। तब धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गंधा के साथ मुनिराज के पास गया और अपनी पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि गिरनार पर्वत के निकट एक नगर के राजा भूपाल ने अपनी रानी सिंधुमती को अपने रूप का बहुत ही घमण्ड था। किसी समय राजा के साथ वनक्रीड़ा के लिए जाते हुए गंगदत्त ने नगर में आहारार्थ प्रवेश करते हुए मासोपवासी समाधिगुप्त मुनिराज को देखा अैर सिंधुमती से बोला-प्रिये! अपने घर की तरफ जाते हुए मुनिराज को आहार देकर तुम पीछे से आ जाना। सिंधुमती पति की आज्ञा से लौट आई किन्तु मुनिराज के प्रति तीव्र क्रोध भावना हो जाने से उसने कड़वी तूमड़ी का आहार मुनि को दे दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। उस समय राजा ने सिंधुमती का मस्तक मुण्डवाकर उस पर पाँच बेल बंधवाये, गधे पर बिठाकर नगर में बाहर निकाल दिया। इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और अत्यधिक वेदना व दुख को भोगते हुए वो रौद्र भावों से मर के नर्क में गई। वहाँ अनन्त दुखों को भोगने के बाद पशु योनि में उत्पन्न हो कोई और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्या हुई। तब धनमित्र ने मुनिराज से अपनी समस्या का समाधान पूछा तो इस पर स्वामी ने उससे कहा कि सम्यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत का पालन करो, अर्थात् प्रति मास में रोहिणी नामक नक्षत्र जिस दिन आये उस दिन विधि विधान से पूजा अर्चना करो किन्तु यह व्रत एक अवधि तक ही करना। दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत धारण किया और आयु के अंत में संयास सहित मरण कर प्रथम स्वर्ग में देवी हुई और वहाँ से आकर अशोक की रानी हुई। राजा अशोक के बारे में बताते हुए तो स्वामी ने कहा कि भील होते हुए उसने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किया था, इसलिए वह नर्क में गया था तब रोहिणी व्रत करके उसने अपने सारे पापों मुक्ति पा ली और राजा अशोक का जन्म लिया। इस प्रकार राजा अशोक और रानी रोहिणी, रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्वर्गादि सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हुए |
इस व्रत की समाप्ति भी उद्यापन के साथ की जाती है। जो व्रत के आखिरी दिन किया जाता है। कहतें है यह व्रत महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखतीं है। ऐसी मान्यता है कि माता रोहिणी के आशीर्वाद से भक्तों के जीवन से सभी कष्ट दुःख और दरिद्रता दूर हो जाता है |