सगाई और अंगूठी रस्म विवाह के लिए कुंजी का काम करती है और विवाह के पहले की सबसे महत्वपूर्ण रस्म होती है. यह दों परिवारों के बीच विवाह के पुष्टिकरण को प्रमाणित करने के लिए किया जाता है. भारत के कई सारे भागों में इसे ‘वाग्दान’ और ‘जन्म पत्रिका’ रस्म के नाम से जाना जाता है. पुराने समय में सगाई की रस्म समाज में शुभ समाचार घोषित करने के लिए आयोजित की जाती थी.
बहुत से लोगों में यह गलत धारणा है की सगाई भारतीय परम्परा के रस्म का हिस्सा नहीं है और यह पश्चिमी समाज से आया है लेकिन यह सत्य नहीं है. हिन्दू धर्म में यह रस्म लगभग हर संस्कृति में होती है लेकिन अलग-अलग नामों से इसे जानते है. इन्हें मंगनी, आशीर्वाद और मिसरी कहते है.
सगाई समारोह की रस्म
दो परिवारों द्वारा लड़का और लड़की के विवाह का निर्णय लेने के बाद, वे इसकी पुष्टि की ओर रुख करते है और इस रिवाज द्वारा एक-दुसरे के लिए उन्हें सुनिश्चित कर देते है. दुल्हन के पिता से दुल्हे के पिता को अनुमति मिलने के बाद , वे सगाई की योजना बनाते है जहाँ अंगूठियाँ बदली जाती है और “वाग्दान” की रस्म निभाई जाती है. लड़का और लड़की भी “लग्न-पत्रिका” की रस्म में भाग लेते है जो की एक-दुसरें से एक लिखित शपथ होती है की विवाह बाद की तिथि में होगी.
नीचें क्रमशःनुसार सगाई विधि की प्रक्रिया उल्लेखित है
विधि :
- दूल्हा और दुल्हन के परिवारजन एक स्थान पर एकत्रित होते है.
- संकल्प और पुन्यवचनम् की विधि होती है.
- दुल्हन के पिता द्वारा समर्थन पाने के बाद ,दुल्हे के पिता अपने पुत्र के लिए दुल्हन का हाथ मांगने का निवेदन करते है.
- इसके बाद दुल्हन और उसके पिता विवाह के लिए उपयुक्त मुहूर्त्त सुनिश्चित करते है.
- दुल्हे के पिता और उनका पुत्र इस विवाह प्रस्ताव को पुनःनिश्चित करते है.
- दुल्हे की माँ दुल्हन को साड़ी और गहनें भेंट करती है और दुल्हन के पिता दूल्हें को कपड़े और जेवर भेंट करते है.
- गणेश पूजा और वरुण पूजा की जाती है.
- दुल्हन अपने होनेवाले विवाह की सफलता के लिए देवी शची की पूजा करती है.
- इसके बाद दुल्हन पांच औरतों के साथ मंगल आरती करती है.
- दूल्हा और दुल्हन अपने भविष्य के लिए एक-दुसरे की स्वीकृति हेतु अंगूठी बदलते है.
- आशीर्वाद और बधाईयों के साथ सगाई की औपचारिक घोषणा की जाती है.
दूल्हा और दुल्हन के अंगूठी रस्म में शामिल होने से पहले ग्रह शांति पूजा की जाती है. इस रस्म का आरंभ “c” के साथ होता है जो की एक शुद्धिकरण रस्म होती है जिसमें दूल्हा और दुल्हन को सुगन्धित तेल और हल्दी लगाना शामिल होता है. अगला, “मुहुर्तामेधा” की रस्म होती है जिसमें होनेवाले विवाह की तिथि को औपचारिक रूप से घोषित किया जाता है और “संकल्प” की विधि होती है जिसमें आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की जाती है.
ये रस्में एक क्षेत्र से दुसरें क्षेत्र में भिन्न होती है
गुजराती सगाई :
गुजरती संस्कृति में मंगनी की रस्म सगाई या गोआल धन्ना के नाम से जानी जाती है. जिसका अर्थ धनिया के बीज और गुड़ होता है. यह दोनों ही चीजें गुजराती सगाई में बांटी जाती है. सगाई के लिए, दुल्हन और उसके परिवारवाले दुल्हे के घर दुल्हे के साथ-साथ उसके परिवारवालों के लिए ‘मतली’ या मिठाइयाँ और भेंट से भरे स्टील के पात्र लेकर जाते है. युगलजोड़ें अंगूठी बदलने के रस्म करते है और अपने दोनों परिवार की पांच औरतों से आशीर्वाद लेते है. यह दोनों ही परिवारों के एक-साथ होने का सूचक होता है.
उत्तरी भारतीय सगाई :
उत्तरी भारतीय विवाह में तिलक भी सगाई समारोह में मुख्य रस्म होता है. दुल्हन के पिता दुल्हे के माथे पर मंगलकारी सिंदूर का तिलक और चावल लगाते है. इसके बाद दोनों ही परिवारों के बीच फल की टोकरियों, मेवे और मिठाइयों की अदला-बदली होती है. दुल्हे का परिवार भी दुल्हन के लिए कपड़े और गहनें लेकर आता है.
दक्षिण भारतीय / पूर्वी भारतीय सगाई :
यह सामान्य सगाई समारोह से थोड़ी अलग होती है. इसकी सबसे अच्छी बात ये होती है की इसमें दूल्हा और दुल्हन का होना अनिवार्य नही होता है. दक्षिण भारत में सगाई समारोह होने वाले दूल्हा और दुल्हन के परिवारों के बीच एक वचनबद्धता से बेहतर होती है. दक्षिण भारतीय सगाई समारोह में सबसे महत्वपूर्ण रस्म एक सगाई के थाली के अदला-बदली की होती है जिसे ‘तत्तु’ कहते है जिसमें नारियल, फूल, हल्दी, सुपारी और पान के पत्ते होते है.
बिल्कुल यही रस्में पूर्वी भारतीय राज्यों में भी की जाती है. वे भी सिंदूर, लाल चूड़ियाँ और कपड़ों की अदला-बदली करते है. इसे ‘निर्वंधा’ कहते है.
क्या सगाईमें “रींग सेरेमनी” हिंदू प्रथा हैं ? कृपया मुझे समझाएँ।