संकष्टी चतुर्थी का त्यौहार भगवान गणेश जी को समर्पित है। इस त्यौहार को प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। हालाँकि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है। लेकिन सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी पंचांग के अनुसार माघ और पौष के महीने में पड़ती है। इस वर्ष संकष्टी चतुर्थी मंगलवार, 17 सितंबर 2019 को पड़ रही है। इस वर्ष इस दिन विश्वकर्मा पूजा भी मनाई जाएगी।
संकष्टी चतुर्थी कथा-1
कथा के अनुसार, सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका ही नहीं, बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि बच्चे की बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया। लेकिन बालक की माता ने उस दिन गणोश जी की पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला तो गणोश जी से प्रार्थना की। सबेरे कुम्हार ने देखा कि आंवा पक गया, लेकिन बालक जीवित और सुरक्षित था। डर कर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणोश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणोश पूजा करने का आदेश दिया। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी कथा 2
भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे. तभी मां पार्वती को चोपड़ खेलने का मन करता है, लेकिन इस खेल को खेलने के लिए एक सदस्य की आवश्यकता होती है. क्योंकि हार जीत का फैसला तीसरा सदस्य करता है. इसलिए मां पार्वती ने मिट्टी से एक मूरत बना कर उसमें जान फूंक दी. और उस बालक को बोला तुम खेल का फैसला करना. खेल में हर बार मां पार्वती जीत जाती है. लेकिन बालक ने गलती से भगवान शिव का नाम ले लिया. जिसके पश्चात मां पार्वती ने कोध्रित होते हुए उस बालक को लंगड़ा बना दिया. उसके बाद बालक मां से क्षमा मांगने लगा. मां पार्वती ने बालक को उपाय बताया की संकष्टी व्रत के दिन यहां कन्याएं गणेश जी की पूजा करने आती है. उन कन्याओं से से व्रत और पूजा की विधि पूछना और पूरी श्रद्रा से वर्त रखना.
बालक पूरे विधि विधान व्रत वा पूजा पाठ करता है. एक दिन भगवान गणेश जी बालक को दर्शन देते हुए वरदान देते है. बालक गणेश जी से अपने माता पिता शिव पार्वती से मिलने वरदान मांगते है. जिसके बाद बालक कैलाश पर्वत माता पिता से मिलने पहुंच जाता है, लेकिन वहां मां पार्वती शिवजी से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली जाती है. शिव उस बालक से पुछते है कि श्राप से मुक्ति कैसे मिली बालक शिव को सब बताते हैं. उसके बाद शिवजी भी इस व्रत को करते है. मां पार्वती एक दिन अपने आप कैलाश लोट आती हैं. इस तरह गणेश जी व्रत करने से सभी मनोकामना पूरी होती है.
आप पसंद करेंगे: गणेश चतुर्थी
संकष्टी चतुर्थी व्रत विधि
व्रत विधि
प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष चौथे के दिन संकट चतुर्थी तथा चौथमाता का व्रत किया जाता है।
दिनभर निराहार उपवास किया जाता है।
चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य देकर तथा गणेशजी एवं चौथ माता की पूजा करके लड्डू का भोग लगाकर भोजन करते हैं। वैशाख कृष्ण 4 से ही चौथमाता का व्रत प्रारंभ करते हैं।
आप पसंद करेंगे: गणेश चतुर्थी पूजा विधी
कैसे करे
- चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
- श्रीगणेश की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें।
- तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें।
- फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से श्रीगणेश को स्नान कराके विधिवत तरीके से पूजा करें।
- गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना करें।
- श्री गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डू तथा मोदक का भोग लगाएं। ‘ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित है।’
- सायंकाल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुनें और सुनाएं।
- तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें।
- विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र ‘ॐ गणेशाय नम:’ अथवा ‘ॐ गं गणपतये नम: की एक माला (यानी 108 बार गणेश मंत्र का) जाप अवश्य करें।
- इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान करें। तिल-गुड़ के लड्डू, कंबल या कपडे़ आदि का दान करें।
Thanks for sharing your thoughts. I truly appreciate your efforts and I will
be waiting for your next write ups thanks once
again.