कालाष्टमी हर माह में पड़ती है. ज्येष्ठ माह में कालाष्टमी 2 जून यानी आज है. कालाष्टमी के दिन भगवान शिव का विग्रह रूप माने जाने वाले कालभैरव (Kaal Bhairav) की पूजा की जाती है. उन्हें शिव (Lord Shiva) का पांचवा अवतार माना गया है. इनके दो रूप हैं पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध हैं तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक हैं. भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति भयमुक्त होता है और उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती है.मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से रोगों से भी मुक्ति मिलती है.
कालाष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ – 02 जून रात्रि 12 बजकर 46 मिनट से
कालाष्टमी व्रत का महत्व
काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है.वह समस्त पापों और रोगों का नाश करने वाले हैं.हिंदू शास्त्रों के अनुसार कालाष्टमी के दिन श्रद्धापूर्वक वर्त रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस दिन व्रत रखकर कुंडली में मौजूद राहु के दोष से भी मुक्ति मिलती है.इसके साथ ही शनि ग्रह के बुरे प्रभावों से भी काल भैरव की पूजा करके बचा जा सकता है.तंत्र साधन करने वाले लोगों के लिए भी कालाष्टमी का दिन बहुत खास होता है.
पौराणिक कथा
कालाष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली. इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई. सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, लेकिन ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए. इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने इसे अपना अपमान समझा. शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया. इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है. इनके एक हाथ में छड़ी है.
इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है. इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है. शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए. भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया. तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं. इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया. ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में वापस आए. अन्य खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।