बल, बुद्धि के दाता हनुमान जी (Hanuman Ji) असीमित ऊर्जा के प्रतीक भी माने जाते हैं. मंगलवार (Mangalwar) के दिन हनुमान जी का विधि-विधान से पूजन करने पर वे अपने भक्तों के जीवन के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं. हुनुमान जी का एक नाम संकट मोचन भी है. पौराणिक कथाओं के अनुसार सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि देवता भी संकट से उबारने के लिए हनुमान जी का वंदन करते रहे हैं. ऐसी ही एक पौराणिक कथा हम आपको बताने जा रहे हैं जिसमें देवताओं की मदद के लिए और दुष्ट असुर का संहार करने के लिए हनुमान जी को ग्यारह मुखी (Gyarahmukhi) रूप रखना पड़ा था.
बता दें कि हनुमान जी को रुद्र का अवतार भी माना जाता है. उन्हें कालजई और चिरंजीवी देवता भी माना गया है. अपने इष्ट के प्रति परम भक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण हनुमान जी का सामने आता है. रामभक्त हनुमान अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता हैं. उनके अनेक रूपों और अवतारों की महिमा बताई गई है. ऐसे ही उनके एक रुप एकादशमुखी हनुमान जी के बारे में हम जानेंगें.
हनुमान जी के एकादश मुखी रूप की कथा
हनुमान जी के ग्यारहमुखी रूप को लेने के पीछे की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक कालकारमुख नाम का अति शक्तिशाली राक्षस हुआ था. वह 11 मुख का था. उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वर मांगने को कहा. इस पर कालकारमुख ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा. इस पर ब्रह्मा जी ने उसे अमरता का वरदान असंभव बताते हुए कुछ और वर मांगने को कहा. इस पर कालकारमुख ने कहा कि आप मुझे ऐसा वर दीजिए की जो भी मेरी जन्मतिथि पर ग्यारह मुख धारण करे वही मेरा अंत करने में सक्षम हो.
ब्रह्मा जी ने कालकारमुख को ये वरदान दे दिया. इसके बाद असुर कालकारमुख जालिम हो गया और उसने देवों और उनकी सेना को आतंकित करना शुरू कर दिया. उसने सेना के साथ देवताओं पर चढ़ाई कर उन्हें परास्त कर दिया. इसके अलावा वह समस्त लोकों में भयंकर आतंक मचाने लगा. इस पर असहाय देव भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे सहायता की मांग की. इस पर विष्णु जी ने कहा कि में श्रीराम के रुप में धरती पर पहले से ही मौजूद हूं. इस समस्या के निवारण के लिए आप श्रीराम के पास जाएं. इस पर सभी देवता धरती पर भगवान राम के समक्ष पहुंचे और इस संकट से उबारने की प्रार्थना की. इस पर रामजी ने देवताओं को कहा कि इस संकट से सिर्फ हनुमान जी ही उबार सकते हैं.
कथा के अनुसार प्रभु राम की आज्ञा से हनु्मान जी ने चैत्र पूर्णिमा के दिन 11 मुखी रुप ग्रहण किया जो राक्षस कालकारमुख की जन्मतिथि थी. जब असुर कालकारसुर को इसका पता चला तो वह हनुमान जी का वध करने के लिए सेना के साथ निकल पड़ा. कालकारमुख की इस हरकत को देखकर हनुमान जी क्रोधित हो गए और उन्होंने क्षणभर में ही उसकी सेना को नष्ट कर दिया. फिर हनुमान जी ने कालकारमुख की गर्दन पकड़ी और उसे बड़ी वेग से आकाश में ले गए और वहां उसका वध किया. अन्य खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।